चलते चलते, राह में
हम
सहम से जाते हैं
कुछ देखकर, कुछ भांप कर
ज़रा-ज़रा सी आहट पर !
कभी कुछ होता है -
कभी कुछ नहीं भी होता है !
पर
जब हम सहम जाते हैं
तब
न चाहकर भी, कुछ पल को
हम
सहमे ही रहते हैं !
होता है अक्सर
न चाहते हुए भी, न चाहकर भी !
फिर
चलते हैं, चल पड़ते हैं,
हम
आगे की ओर !
आगे की ओर !
थोड़ा थोड़ा सहमे हुए ही, पर
चलते चलते
मिलता है, फिर, धीरे धीरे
हौसला हमें
आगे बढ़ने के लिए, तेज चलने के लिए !
फिर
ठहरते नहीं, सहमते नहीं
चलते, चले चलते हैं
हम
नए हौसले, नए जज्बे, नए कदमों संग
एक नई मंजिल की ओर !!
2 comments:
गिर कर संभलना, उठ कर चलना ही जीवन है ! Nice posting.
यही जीवन है।
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