Wednesday, June 1, 2011

रक्तबीज ...

हे भगवन ...
तेरी लीला भी अपरंपार है
रोज ... कैसे कैसे चमत्कार हो रहे हैं
भ्रष्ट, भ्रष्ट, भ्रष्टतम भ्रष्ट, अजर-अमर हो रहे हैं !

सिर्फ अजर-अमर होते
तो चल भी जाता ... पर ...
ये सब ... रक्तबीज हो रहे हैं !

ये जहां-जहां जाते हैं, जिन राहों से गुजरते हैं
इनके कदम, कदमों के निशां
रोज, हर रोज
नए-नए ... हष्ट-पुष्ट भ्रष्टाचारियों को -
जन्म दे रहे हैं !

अब बता ... तू ही बता ... कुछ तो बता
ये तेरी कौन-सी माया है
क्या मांजरा है, क्या होनी-अनहोनी है !

क्यों ... और कब तक
असहाय, दयालू, भोले-भाले, निरीह, जनमानुष
इनके नापाक इरादों की भेंट चढ़ते रहेंगे !

बोल ... बता ... कुछ तो बता
हे भगवन
कब तक तू ... यूं ही खामोश रहेगा !

या फिर ... कहीं तूने ... अपने कानों में
रुई तो नहीं ठूंस रखी है
यदि रुई ठूंस रखी है ... तो फिर कोई बात नहीं !

यदि कान खुले रखे हैं ... तो सुन -
उठाले, मार दे, नष्ट कर दे
इन दरिंदों को, रक्तबीजों को !

या फिर ... इन
निरीह, दयालू, भोले-भाले, असहाय जनमानुष को
तू ... अपने हांथों से, जला कर राख कर दे !

इन्हें ... इनके नारकीय जीवन से
संसार से
मुक्त कर दे - मुक्त कर दे !!

6 comments:

राज भाटिय़ा said...

एक अति सुन्दर प्रस्तुति!!! भगवान इन्हे मोका दे रहा हे, इन के पापो का घडा भरे तो इन्हे ...

प्रवीण पाण्डेय said...

हे भगवन, सबको मुक्त कर दो।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जल्दी करो, जल्दी करो...

Apanatva said...

sarthak lekhan

Apanatva said...

sarthak lekhan

Coral said...

मुक्त कर दे ...बहुत सुन्दर