Tuesday, May 31, 2011

नालायक ...

भईय्या ... अब मैं
बहुत लायक हो गया हूँ
आप बेवजह ही मुझे
सुबह से शाम तक , सारा दिन
नालायक ... नालायक, कहते रहते हो
अब ... आप मुझे
लायक कहना शुरू कर दीजिये !

अरे वाह ... बहुत खूब ... कैसे ?
भईय्या ... आप तो देख ही रहे हो कि -
अब मैं ... दिन में एकाद तो
लायकी के काम करने ही लगा हूँ
आपने देखा ... परसों
टेबल से जमीन पर
जलती चिमनी गिर गई थी
पूरे घर में, आग लग सकती थी
त्वरित ही मैंने, खूंटी पे टंगे कोट से
आग बुझा दी थी !

और तो और ... कल रात
मुझे आईडिया आया तो मैंने
दूध की गंजी के ढक्कन को
खुला छोड़ दिया था
आपने देखा ... रोज की तरह
बिल्ली ... भले ही दूध ...
पी कर चली गई ... पर
गंजी को जमीन पर नहीं गिरा पाई !

अब आप ... मेरी पीठ ठोकिये
और कुछ इनाम दे ही दीजिये
लाइये ... लाइये ...
कुछ इनाम दीजिये ...
चुप ... नालायक कहीं के ...
तू ...
नालायक का नालायक ही रहेगा !!

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