तेरी लीला भी अपरंपार है
रोज ... कैसे कैसे चमत्कार हो रहे हैं
भ्रष्ट, भ्रष्ट, भ्रष्टतम भ्रष्ट, अजर-अमर हो रहे हैं !
सिर्फ अजर-अमर होते
तो चल भी जाता ... पर ...
ये सब ... रक्तबीज हो रहे हैं !
ये जहां-जहां जाते हैं, जिन राहों से गुजरते हैं
इनके कदम, कदमों के निशां
रोज, हर रोज
नए-नए ... हष्ट-पुष्ट भ्रष्टाचारियों को -
जन्म दे रहे हैं !
अब बता ... तू ही बता ... कुछ तो बता
ये तेरी कौन-सी माया है
क्या मांजरा है, क्या होनी-अनहोनी है !
क्यों ... और कब तक
असहाय, दयालू, भोले-भाले, निरीह, जनमानुष
इनके नापाक इरादों की भेंट चढ़ते रहेंगे !
बोल ... बता ... कुछ तो बता
हे भगवन
कब तक तू ... यूं ही खामोश रहेगा !
या फिर ... कहीं तूने ... अपने कानों में
रुई तो नहीं ठूंस रखी है
यदि रुई ठूंस रखी है ... तो फिर कोई बात नहीं !
यदि कान खुले रखे हैं ... तो सुन -
उठाले, मार दे, नष्ट कर दे
इन दरिंदों को, रक्तबीजों को !
या फिर ... इन
निरीह, दयालू, भोले-भाले, असहाय जनमानुष को
तू ... अपने हांथों से, जला कर राख कर दे !
सिर्फ अजर-अमर होते
तो चल भी जाता ... पर ...
ये सब ... रक्तबीज हो रहे हैं !
ये जहां-जहां जाते हैं, जिन राहों से गुजरते हैं
इनके कदम, कदमों के निशां
रोज, हर रोज
नए-नए ... हष्ट-पुष्ट भ्रष्टाचारियों को -
जन्म दे रहे हैं !
अब बता ... तू ही बता ... कुछ तो बता
ये तेरी कौन-सी माया है
क्या मांजरा है, क्या होनी-अनहोनी है !
क्यों ... और कब तक
असहाय, दयालू, भोले-भाले, निरीह, जनमानुष
इनके नापाक इरादों की भेंट चढ़ते रहेंगे !
बोल ... बता ... कुछ तो बता
हे भगवन
कब तक तू ... यूं ही खामोश रहेगा !
या फिर ... कहीं तूने ... अपने कानों में
रुई तो नहीं ठूंस रखी है
यदि रुई ठूंस रखी है ... तो फिर कोई बात नहीं !
यदि कान खुले रखे हैं ... तो सुन -
उठाले, मार दे, नष्ट कर दे
इन दरिंदों को, रक्तबीजों को !
या फिर ... इन
निरीह, दयालू, भोले-भाले, असहाय जनमानुष को
तू ... अपने हांथों से, जला कर राख कर दे !
इन्हें ... इनके नारकीय जीवन से
संसार से
मुक्त कर दे - मुक्त कर दे !!
मुक्त कर दे - मुक्त कर दे !!
6 comments:
एक अति सुन्दर प्रस्तुति!!! भगवान इन्हे मोका दे रहा हे, इन के पापो का घडा भरे तो इन्हे ...
हे भगवन, सबको मुक्त कर दो।
जल्दी करो, जल्दी करो...
sarthak lekhan
sarthak lekhan
मुक्त कर दे ...बहुत सुन्दर
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