Sunday, April 17, 2011

सपने ...

तेरे सपने, मेरे सपने
इन आँखों के सच्चे सपने !

दूर गगन के जगमग तारे
जगमग करते सारे अपने !

फूल खिले हैं बगिया में
उन फूलों की खुशबू अपनी !

नदियों में बहता है पानी
उस पानी में मछली अपनीं !

पवन है बहती पास गगन में
उसमें उड़तीं चिड़ियाँ अपनी !

तेरे सपने, मेरे सपने
इन आँखों के सच्चे सपने !!

6 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

प्रवीण पाण्डेय said...

सच्चे सपने, सुख हों अपने।

arvind said...

तेरे सपने, मेरे सपने
इन आँखों के सच्चे सपने....sundar kavita.

DushyantSharma said...

Kash ye sapne sach ho jayen

Unknown said...

बहुत अच्छा. शानदार.

मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
मीडिया की दशा और दिशा पर आंसू बहाएं
भले को भला कहना भी पाप

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ओर सच्चे सपने जी. धन्यवाद