Monday, April 4, 2011

सच ! कोने कोने में मदारियों और जमूरों का राज है !!

उफ़ ! कोई समझाए इन्हें, खेल, खेल है
कोई जंग नहीं, जिसमें आजादी का जिक्र हो !
...
कब तलक खुद को लुटने से बचाते फिरें
जाएं तो जाएं कहाँ, लुटेरों की हुकूमत है !
...
ये अपना देश है, भारत महान ! तमाशे ही तमाशे हैं
सच ! कोने कोने में मदारियों और जमूरों का राज है !
...
तेरे नखरे, अदाएं, किसी क़यामत से कम नहीं होते
सच ! फिर जरुरत क्या है तुझे, सझने-संवरने की !
...
तेरी खुबसूरती पे लिखते लिखते कहीं ये हांथ थक जाएं
सच ! थकें, इससे पहले ही तू ज़रा सी, इन्हें ताकत दे दे !
...
सच ! होने को तो कौन कौन नहीं है शहर में
पर हमें तो आप ही असल कवि लगते हो !
...
नए अल्फाजों को कोई लाये तो कहाँ से लाये
जो हुनर आप में है, काश ! वो होता हम में !
...
हम तो टुकड़ों टुकड़ों से, रच लेते हैं रचनाएं
उफ़ ! कोई कहे, हम चोर हैं, तो कहता रहे !
...
हम उतने भी बड़े नहीं हैं, नए शब्द गढ़ लें
जो बिखरा हुआ है, उसे ही सहेज लेते हैं !
...
काश कोई, , , , , , , , , का भी कापी राईट करा ले
फिर जरुर हम, या कोई और, नए नए शब्दों का सैलाब लाएगा !!

4 comments:

Apanatva said...

हम उतने भी बड़े नहीं हैं, नए शब्द गढ़ लें
जो बिखरा हुआ है, उसे ही सहेज लेते हैं !
...

bahut sunder .

kshama said...

कब तलक खुद को लुटने से बचाते फिरें
जाएं तो जाएं कहाँ, लुटेरों की हुकूमत है !
Bahut khoob!

प्रवीण पाण्डेय said...

तगड़ा कटाक्ष।

अरुण चन्द्र रॉय said...

गहरा व्यंग्य है कविता में ..