भीड़ में सब शेर बन, इधर-उधर दहाड़ते
जुल्म देख पड़ोस में, सब भीगी बिल्ली हो गए !
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उफ़ ! जब से हुआ है इश्क, हमें नींद है आती नहीं
ख़्वाब देखें भी तो क्या, तुम बसे हर ख़्वाब में !
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उफ़ ! क्या खूब नज़ारे हैं, जी तो चाहे हम देखते रहें
हंसी वादियां, वर्फ, खुबसूरती, देखें तो देखें किसे !
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फितरती सोच के कारण, लगे इल्जाम हैं इन पर
अब क्या कहें हम, इनकी ये आदत नहीं जाती !
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'खुदा' जाने हुस्न की और भी क्या क्या अदाएं होंगी
उफ़ ! किसी ने जान कर भी अनजान बन, हमारी जान ले ली !
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उफ़ ! बिलकुल नई इबारत, नई कहानी जान पड़ती है
पर जिस्म से जिस्म का रिश्ता, तो सदियों पुराना है !
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सच ! न तो इस पार ठहरे, और न ही उस पार निकले
फंस गए हम, हुस्न के नखरे ही बड़े तिलस्म निकले !
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गर दोनों ही शख्स जज्बातों में संकोच न करें
तो फिर लव क्या, और अरेंज क्या, सफल हैं !
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फर्क इतना ही है यारा, दोस्ती और मोहब्बत में
एक में है जान का खतरा, दूजी जीने नहीं देती !
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भाव, अभाव, प्रभाव, दुर्भाव, प्रादुर्भाव, समभाव
टिप्पणियाँ ! क्या गजब दस्तूर हैं ब्लागजगत के !!
7 comments:
dosti usi se kariye jisse mohabbat ho ,fir khatra aadhaa rah jayega..
उफ़ ! जब से हुआ है इश्क, हमें नींद है आती नहीं
ख़्वाब देखें भी तो क्या, तुम बसे हर ख़्वाब में !
बहुत खूब
ज़माना खराब है, क्या कीजे!
संचारी भाव..
कमाल है।
टिप्पणियां न हों तो मजा कैसे आये.
चलो आज टिपण्णी नही करते,
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