Friday, March 18, 2011

अब कोई हमें, जन्नत का दिलासा न दे ... !!

एक माँ ही तो है, जिसके मन मंदिर में, हर क्षण बहती है ममता
दुआएं है देती आई, सदियों से, फिर बेटा चाहे रावण हो या राम !
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गर जज्बे, हौसले, मंसूबे, तूफानों से उमड़ रहे हों जहन में
फिर पत्थरों की परवाह किसे, नजरें मंजिलों पे ठहर जाती हैं !
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अब कोई हमें, जन्नत का दिलासा न दे
हम तो आये हैं वहीं से होकर !
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कल सोने न दिया थकान ने, सारी रात हमको
सुबह से फिर है शुरू, मंजिल तक सफ़र मेरा !
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कोई चाहे भी तो, शायद अब हम न चाहेंगे उसे
एक बार चाहा, और चाहत का अंजाम है देखा !
...

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

दमदार अभिव्यक्ति।

अरुण चन्द्र रॉय said...

होली मुबारक !!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

holI kii badhaai ghrahan kijiye..

kshama said...

Holi mubarak ho!

राज भाटिय़ा said...

होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!