हम तो तुम्हें, बचपन से, बड़ा मासूम समझते रहे
अरे, तुम तो आशिक़ी में हम से भी आगे निकले !
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क्या कहें, खुबसूरती की मल्लिका पे दिल आया है
रोका भी नहीं जाता, और सम्भाला भी नहीं जाता !
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जब तक मोहब्बत थी, वो संजीदा थे
सच ! दिल टूटते ही, बेख़ौफ़ हो गए !
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न जाने कब से, दस्तक दे रहा हूँ मैं
खोल, खोल, दिल के दरवाजे खोल !
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कब तक तुम्हें हम, यूं ही दूर से देखते रहें
कहो, वो घड़ी कब आयेगी, जब सामने रहें !
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भ्रष्टाचार और कालेधन के मसले सुलझाने में उलझे रहे
कहाँ से फुर्सत निकाल पाते, आम जन-मानस के लिए !
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सच ! पूरे महिने लुटते-लुटाते रहे
पर आज खुश हैं पहली तारीख है !
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अभी देखा ही नहीं हमने, तुमको जी भर के
कैसे हम, उत्साह में ही, शुक्रिया अदा कर दें !!
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हमारे गाँव में भ्रष्टाचार, शिष्टाचार हो चला है
उफ़ ! बेशर्मी देखो, सरपंच दांत निपोर रहा है !!
5 comments:
Ha,ha! Yebhee khoob kahee!!
दमदार।
आज सब तरफ़ यही हाल हे
असरदार
उघार के रख दिये...हमरे गांव मे....
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