Thursday, February 24, 2011

उफ़ ! मेरी माशूक भी तनिक झूठी निकली !!

खेत, खदान, कुआ, स्कूल, दुकान, आते-जाते लोग
सबसे होती दुआ-सलाम, क्या खूब होती है गाँव की सब !
...
उफ़ ! एक लब्ज, 'मोहब्बत', जुबां से हटता नहीं
बहुत कोशिश की, कोई दूजा शब्द जंचता नहीं !
...
अब क्या कहें, खुद को संभाला नहीं जाता
उफ़ ! कहीं ऐसा हो, हमें भी प्यार हो जाए !
...
हुस्न, मासूम, मोहब्बत, नखरे, क़त्ल
उफ़ ! कोई बताये,कैसे संभाले खुद को !
...
चलो कुछ देर हवाओं में उड़ान भर लें
हौसलों से, कुछ फासला तय कर लें !
...
कोई
अजनबी सा मुझसे, तन्हाई में मिला
उसका मिजाज क्या था, मैं ये सोचता रहा !
...
मासूम बन के संगदिल क़त्ल करते रहे
हम नहीं हैं, मासूम हुस्न पे मरने वाले !
...
लात-घूंसों की पुरजोर ख्वाईश है उसे
काश ! कोई पकड़ के भुर्ता बना दे उसका !
...
खता
आँखों ने की, और कुसूरवार दिल को ठहरा दिए
कितने खुदगर्ज हो चले हैं हम, जो खता मानते नहीं !
...
आज दिल उदास हुआ, एक भ्रम जो टूट गया
उफ़ ! मेरी माशूक भी तनिक झूठी निकली !!

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

तनिक झूठ तो नखरों का अंग है।

vandana gupta said...

बहुत खूब्।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तल्ख़ शेर लिखे हैं ...खूबसूरत अभिव्यक्ति

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

वाह !...मन की वेदना को कहती हुई रचना ..

Dr Varsha Singh said...

दुख आता है तो सुख भी आता है...ठीक रात के बाद सुनहरी सुबह जैसा।