Friday, February 25, 2011

सच ! ये कुछ और नहीं, हमारी जमा पूंजी है !!

सेठ, साहूकार, अमीर, व्यापारी, नेता, अफसर
इनकी ही जय जयकार है, मेरा भारत महान !
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प्यार, दर्द, जख्म, आंसू, यादें, गम, नफ़रत
माँगने की हदें मत तोड़ो, लो हम खुद गए !
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मैं जब तक मैं रहा, कुछ भी रहा
आज मेरा मुझसे कोई वास्ता नहीं !
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कुढ़ना
,चिढचिढाना,उखढ़ना,बौखलाना,पिनपिनाना
उफ़ ! क्या स्टाईल होता है, खूसट-लम्पट लोगों का !
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हम जब तक तुम में रहे, अक्श बन कर रहे
जाने कब निकले, और कब हम हो गए !
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लालिमा, चहचहाहट, हवाएं, क्या हंसी सब है
काश ! ये लम्हें, इन्हें हम कुछ देर रो पाते !
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गए आवाज पर हम, जब कहो तब जायेंगे
कब कहा हम हैं अपने, और कभी कह पायेंगे !
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उफ़ ! जिन्होंने खुद का जमीर बेच रक्खा है 'उदय'
आज उन्हें भी मौक़ा मिला है लांछन लगाने का !
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जब किसी को किसी की सुनना-मानना नहीं
फिर बेवजह ही, चर्चा-वार्ता पर टाईम-खोटी !
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कोई कुछ भी कहे, विनम्रता हम छोड़ेंगे
सच ! ये कुछ और नहीं, हमारी जमा पूंजी है !!

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

वाह जी बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद