सुधर तो जायेंगे, पर सुधर के भी क्या करेंगे 'उदय'
उफ़ ! अब तो पाँव हमारे, न घर, और न शहर के रहे !
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जब से हुआ है इश्क, हमें तुम से, क्या कहें
उफ़ ! तुम्हारी बेरुखी भी हमें मीठी लगे हैं !
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आज फिर नूर बिखर गया है जमीं पर 'उदय'
खुशनसीबी हमारी, दूर से सही, दीदार तो हुए !
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पत्रकारिता की दुकां, ये अब मुझसे मत पूछो
कहीं झगड़ा न हो जाए, शहर की दो दुकानों में !
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कहाँ ढूंढूं मैं अब खुद को, खुदी की तस्वीर में यारा
न जाने कितने रंग भर डाले, जमाने की फिजाओं ने !
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सच ! ज़माना बदला है, बदल रहा है 'उदय'
कोई है, घर से बाहर निकल के देखता नहीं !
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क्या अजब, दुनिया के दस्तूर हो चले हैं
दिल में कुछ, जुबां पे कुछ बात होती हैं !
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एक लंगोटी वाले बाबा ने, देश को आजाद कराया था
आज दूसरा बाबा देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराएगा !
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एक अर्सा हो गया था, हमें मुस्कुराए हुए
सच ! तुम्हें देखते ही, हसीं निकल पडी !
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चलो खेल खेल में, प्यार की एक बाजी हो जाए
तुम जीतो, या हम, पर प्यार की जीत हो जाए !!
3 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
अच्छा लगा .........
सच्चाई रहेगी तो प्यार ही जीतेगा।
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