Saturday, February 5, 2011

सच ! लोग हैं जो सारा जहां बेचने के फिराक में हैं !!

कहाँ जाएं, किधर जाएं, कोई अपना नहीं दिखता
उफ़ ! जहां देखो, वहां मजहबी लोग बसते हैं !
...
खुद ही जल पडा हूँ, मत बुझाओ यारो
सच ! बस्ती में बहुत अन्धेरा है !
...
अब तन्हाई की बातों में, रक्खा क्या है 'उदय'
एक दौर था, महफिलों में रहे, तन्हाई साथ रही !
...
खुशी-गम का दौर तो चलता ही रहेगा 'उदय'
अमन के लिए, दो घड़ी बैठ के इबादत कर लें !
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एक बार कह देते, चाहत में तुम्हारी, जान दे देते
सच ! रोज रोज मरने के झंझट से तो बच जाते !
...
ठंड बढ़ने लगी, बढ़ते गई, आग दिखी नहीं
सच ! शब्दरूपी अंगारे जलाकर ताप लेता हूँ !
...
उफ़ ! बदलता दौर है, सब शैतान बने बैठे हैं
किसको समझाएं, सब हांथों में खंजर लिए हैं !
...
जिधर देखो, उधर मायूसी का आलम है
उफ़ ! सब के सब खुदगर्ज हुए हैं !
...
आप ख़ामो-खां खरीदने पे तुले हो 'उदय' मियाँ
सच ! लोग हैं जो सारा जहां बेचने के फिराक में हैं !
...
गुट, गुटबाजी, गुटबाज, क्या आलम है 'उदय'
हिन्दी साहित्य, जगत नहीं मोहल्ला हुआ है !
...
उफ़ ! क्या घोर निंद्रा है, लोकतंत्र की 'उदय'
मच्छरनुमा दानव खून चूस-चूस के मोटे हुए हैं !

10 comments:

राज भाटिय़ा said...

उफ़ ! क्या घोर निंद्रा है, लोकतंत्र की 'उदय'
मच्छरनुमा दानव खून चूस-चूस के मोटे हुए हैं !
बहुत खुब जी धन्यवाद

केवल राम said...

गुट, गुटबाजी, गुटबाज, क्या आलम है 'उदय'
हिन्दी साहित्य, जगत नहीं मोहल्ला हुआ है !

आपको सलाम इस साहस के लिए ..शुक्रिया

vandana gupta said...

एक बार कह देते, चाहत में तुम्हारी, जान दे देते
सच ! रोज रोज मरने के झंझट से तो बच जाते !

...ठंड बढ़ने लगी, बढ़ते गई, आग दिखी नहीं
सच ! शब्दरूपी अंगारे जलाकर ताप लेता हूँ !
...
उफ़ ! बदलता दौर है, सब शैतान बने बैठे हैं
किसको समझाएं, सब हांथों में खंजर लिए हैं !

सच को हमेशा बडी बेबाकी से लिखते हैं आप्…………सराहनीय प्रस्तुति।

Kunwar Kusumesh said...

सुन्दर रचना.

मनोज कुमार said...

बेहतरीन!

प्रवीण पाण्डेय said...

जिसका भी मूल्य उसको बेचने की फिराक में हैं।

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर और बेहतरीन रचना| धन्यवाद|

संजय भास्‍कर said...

बहुत खुब
सच ………सराहनीय प्रस्तुति।

संजय भास्‍कर said...

मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.

अरुण चन्द्र रॉय said...

aaj ke samay ko chitrit karti achhi gazal