Friday, February 4, 2011

... ये रियासत भ्रष्टाचारी हुनर की मिशाल है !!

इतने नाजुक थे हम, मोम बन पिघलते रहे
उफ़ ! लोग छूते भी रहे, साथ साथ डरते भी रहे !
...
अब खामोश बन कर, और बदनाम करो
सच ! जो भी कहना है, ज़रा खुल कर कहो !
...
दम भरते रहे इश्क का, खुद पे नाज करते रहे
वादे, जज्बे, और दिल तोड़, गुनहगार चले गए !
...
सच ! जब भी आती है, मेरे चेहरे पे मुस्कान
लोग बेवजह ही मुझे, दीवाना समझ लेते हैं !
...
सच ! भले हो जाएं चकनाचूर, हम गद्दी नहीं देंगे
किसी के चीखने-चिल्लाने से, डरते नहीं हैं हम !
...
सच ! ये माना हम पैदाईशी अमीर नहीं हैं
ये रियासत भ्रष्टाचारी हुनर की मिशाल है !
...
गाँव, साप्ताहिक बाजार, और बचपन की यादें
सच ! एक एक पल, अब मुझे सताने लगे हैं !
...
गर तुमने आँखों में सपने संजोये होते
कसम 'उदय' की, हम लौट के आये होते !
...
सच
! ये दुनिया, नज़रों का धोखा हुई है 'उदय'
नीयत, सीरत, जज्बे, चाहत, सब बदले हुए हैं !
...
अब जीवन को समझने की जुर्रत नहीं होती
एक दिन आजमाया, सुबह से शाम हो गई !
...
टूट कर बिखरे सपने, हौसला टूटने पाए
सच ! नए दौर में हम, नए सपने सझा लेंगे !

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पर हौसला बना रहे।

महेन्‍द्र वर्मा said...

सच ! जब भी आती है, मेरे चेहरे पे मुस्कान
लोग बेवजह ही मुझे, दीवाना समझ लेते हैं !

वाह, बहुत खूब।
लोगों का काम ही है- अर्थ का अनर्थ करना।
सभी शेर बेमिसाल हैं।

Kailash Sharma said...

दम भरते रहे इश्क का, खुद पे नाज करते रहे
वादे, जज्बे, और दिल तोड़, गुनहगार चले गए !
...

सभी शेर बहुत सुन्दर..

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय उदय जी..
नमस्कार
....वाह, बहुत खूब।
सभी शेर बहुत सुन्दर..

संजय भास्‍कर said...

कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ