दुनिया की भीड़ में, कुछ उलझा हुआ था मैं
जब से मिले हो तुम, कुछ भूला हुआ हूँ मैं !
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अब तूफानों से, क्या शिकबा गिला करें
थे यादों के घोंसले, उड़ कर बिखर गए !
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कल सुबह जब तुम्हें, सीढ़ियों पर धूप में खड़े देखा
सच ! देखता रहा, तुम्हारे खुले केश चमचमाते हुए !
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सच ! तुम्हारी आँखें, बेपनाह प्यार को बयां करती हैं
इन्साफ की घड़ी है, चुप रहती हो या कुछ कहती हो !
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जो रहते हैं दिल में धड़कन बनकर
अब वो रूठें , तो भला कैसे रूठें !
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जब से देखा है तुम्हे, मदहोशी सी छाई है
तुम्हें देखते भी रहें, खुद को सम्हालें कैसे !
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जख्म और दर्द, होते हैं जिन्दगी के हिस्से
आये हैं तो, जाते जाते निशां छोड़ जायेंगे !
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न कोई शिकवा, न कोई शिकायत अब तुझसे रही
तुझसे मिलने के मंजर, बहुत पीछे छोड़ आया हूँ !
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कल तक मेरी दुनिया में अंधेरे ही अंधेरे थे
शुक्र है, आज तुम आये, उजाले हो गए !
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उफ़ ! ये दर्द बार बार क्यूं उभर आते हैं 'उदय'
जो भुला चुके हैं हमें, क्यूं यादों में उतर आते हैं !
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एक फ़रिश्ते ने, इंसानियत की दुकां खोली थी
उफ़ ! दुकां तो खुली है, पर हैवानों का कब्जा है !
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कौन ठंडे और गरम में बेवजह उलझा रहता 'उदय'
सरकार और मीडिया के सम्बन्ध गुनगुने हो गए !!
17 comments:
एक फ़रिश्ते ने, इंसानियत की दुकां खोली थी
उफ़ ! दुकां तो खुली है, पर हैवानों का कब्जा है !
सच है ... और कड़वा सच है।
uday bhai ki is bhtrin dil ko chhune vali rchna ke liyen bdhayi . akhtar khan akela kota rajsthan
ओह बेहतरीन! बधाई
यही तो है कडवा सच
और सबके हाथों में झुनझुने हो गये।
वाह.यह सम्बन्ध भी.
न कोई शिकवा, न कोई शिकायत अब तुझसे रही
तुझसे मिलने के मंजर, बहुत पीछे छोड़ आया हूँ !
एक फ़रिश्ते ने, इंसानियत की दुकां खोली थी
उफ़ ! दुकां तो खुली है, पर हैवानों का कब्जा है ! वाह क्या शेर हैं । अच्च्गी लगी रचना। बधाई।
ओह बेहतरीन! बधाई
कौन ठंडे और गरम में बेवजह उलझा रहता 'उदय'
सरकार और मीडिया के सम्बन्ध गुनगुने हो गए !!
सच कहा है आपने ...सम्बन्ध गुनगुने होने चहिये ..लेकिन आधार गलत न हों .पर आज आधार गलत हैं ...शुक्रिया
सारे बोल, अनमोल...
सभी पंक्तियाँ बहुत सुन्दर..पर इसका कोई ज़वाब नहीं :
एक फ़रिश्ते ने, इंसानियत की दुकां खोली थी
उफ़ ! दुकां तो खुली है, पर हैवानों का कब्जा है !
कटु सत्य बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है..
wah!
har sher umda.
उदय भाई, आपने बडी गहरी बातें बेहद सहजता से कह दीं। हार्दिक बधाई।
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सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
कटु सत्य! बेहतरीन! बधाई|
लाजवाब उदयजी
दीवाना बना लिया आपने कुछ हम भी कहे
या खुदा आज के दौर के भी क्या मंज़र हो गये
मिलाने को जो उठते थे वो हाथ ही खंज़र हो गये
कमल
http://aghorupanishad.blogspot.com
कड़ुवा सच।
समय समय पर इनके बीच संबंध गुनगुने और कुनकुने होते रहते हैं ...
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