Tuesday, January 11, 2011

सरकार और मीडिया के सम्बन्ध गुनगुने हो गए !!

दुनिया की भीड़ में, कुछ उलझा हुआ था मैं
जब से मिले हो तुम, कुछ भूला हुआ हूँ मैं !
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अब तूफानों से, क्या शिकबा गिला करें
थे यादों के घोंसले, उड़ कर बिखर गए !
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कल सुबह जब तुम्हें, सीढ़ियों पर धूप में खड़े देखा
सच ! देखता रहा, तुम्हारे खुले केश चमचमाते हुए !
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सच ! तुम्हारी आँखें, बेपनाह प्यार को बयां करती हैं
इन्साफ की घड़ी है, चुप रहती हो या कुछ कहती हो !
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जो रहते हैं दिल में धड़कन बनकर
अब वो रूठें , तो भला कैसे रूठें !
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जब से देखा है तुम्हे, मदहोशी सी छाई है
तुम्हें देखते भी रहें, खुद को सम्हालें कैसे !
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जख्म और दर्द, होते हैं जिन्दगी के हिस्से
आये हैं तो, जाते जाते निशां छोड़ जायेंगे !
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न कोई शिकवा, न कोई शिकायत अब तुझसे रही
तुझसे मिलने के मंजर, बहुत पीछे छोड़ आया हूँ !
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कल तक मेरी दुनिया में अंधेरे ही अंधेरे थे
शुक्र है, आज तुम आये, उजाले हो गए !
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उफ़ ! ये दर्द बार बार क्यूं उभर आते हैं 'उदय'
जो भुला चुके हैं हमें, क्यूं यादों में उतर आते हैं !
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एक फ़रिश्ते ने, इंसानियत की दुकां खोली थी
उफ़ ! दुकां तो खुली है, पर हैवानों का कब्जा है !
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कौन ठंडे और गरम में बेवजह उलझा रहता 'उदय'
सरकार और मीडिया के सम्बन्ध गुनगुने हो गए !!

17 comments:

मनोज कुमार said...

एक फ़रिश्ते ने, इंसानियत की दुकां खोली थी
उफ़ ! दुकां तो खुली है, पर हैवानों का कब्जा है !
सच है ... और कड़वा सच है।

आपका अख्तर खान अकेला said...

uday bhai ki is bhtrin dil ko chhune vali rchna ke liyen bdhayi . akhtar khan akela kota rajsthan

Arvind Jangid said...

ओह बेहतरीन! बधाई

संजय भास्‍कर said...

यही तो है कडवा सच

प्रवीण पाण्डेय said...

और सबके हाथों में झुनझुने हो गये।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वाह.यह सम्बन्ध भी.

निर्मला कपिला said...

न कोई शिकवा, न कोई शिकायत अब तुझसे रही
तुझसे मिलने के मंजर, बहुत पीछे छोड़ आया हूँ !

एक फ़रिश्ते ने, इंसानियत की दुकां खोली थी
उफ़ ! दुकां तो खुली है, पर हैवानों का कब्जा है ! वाह क्या शेर हैं । अच्च्गी लगी रचना। बधाई।

Deepak Saini said...

ओह बेहतरीन! बधाई

केवल राम said...

कौन ठंडे और गरम में बेवजह उलझा रहता 'उदय'
सरकार और मीडिया के सम्बन्ध गुनगुने हो गए !!
सच कहा है आपने ...सम्बन्ध गुनगुने होने चहिये ..लेकिन आधार गलत न हों .पर आज आधार गलत हैं ...शुक्रिया

Sushil Bakliwal said...

सारे बोल, अनमोल...

Kailash Sharma said...

सभी पंक्तियाँ बहुत सुन्दर..पर इसका कोई ज़वाब नहीं :
एक फ़रिश्ते ने, इंसानियत की दुकां खोली थी
उफ़ ! दुकां तो खुली है, पर हैवानों का कब्जा है !

कटु सत्य बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है..

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

wah!
har sher umda.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

उदय भाई, आपने बडी गहरी बातें बेहद सहजता से कह दीं। हार्दिक बधाई।

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सांपों को दुध पिलाना पुण्‍य का काम है?

Patali-The-Village said...

कटु सत्य! बेहतरीन! बधाई|

कमल शर्मा said...

लाजवाब उदयजी
दीवाना बना लिया आपने कुछ हम भी कहे
या खुदा आज के दौर के भी क्या मंज़र हो गये
मिलाने को जो उठते थे वो हाथ ही खंज़र हो गये
कमल
http://aghorupanishad.blogspot.com

amit kumar srivastava said...

कड़ुवा सच।

समयचक्र said...

समय समय पर इनके बीच संबंध गुनगुने और कुनकुने होते रहते हैं ...