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उतनी ठंड नहीं है, इस सर्द में 'उदय'
जितनी गर्मी होती है, सुर्ख नोटों में !
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लूट, लूट, लूट, घोटाले कर लूट,
देखते हैं, कौन क्या उखाड़ लेगा !
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उफ़ ! यार, तुमको ठीक से घोटाले करने भी नहीं आते
मिल बाँट के कर रहे हो, फिर भी बदनामी की तौमत !
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चलो एक काम करो, इस बार बदनामी नहीं चाहिए
एक ऐसी महा योजना बनाओ, जो सिर्फ हमें पता रहे !
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कुछ तो ख़ास है, टूट पड़े हैं लोग शुभकामना देने
सच ! जन्मदिन तो वो सालों से, हैं मनाते आये !
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तेरी खामोशी का असर, मुझ पे उतर आया है
जब से देखा है तुझे, मैं खामोश हुआ बैठा हूँ !
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बदल रहा था रंग, जो गिरगिट सा भीड़ में
कोई कह रहा था उसको, वो पत्रकार है !
14 comments:
उतनी ठंड नहीं है, इस सर्द में 'उदय'
जितनी गर्मी होती है, सुर्ख नोटों में !
ज़बरदस्त बात
आपके अवलोकनों का स्रोत झन्नाट है।
कहीं ऐसा न हो, रत्न पड़े रहें और कौड़ियां बिक जाएं 'उदय' !
ऐसा हो रहा है उदय जी.
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
बहुत खूब, लाजबाब !
कहीं ऐसा न हो, रत्न पड़े रहें और कौड़ियां बिक जाएं 'उदय' !
इस लोकतंत्र में राजसी स्तर पर तो यही चल रहा है ।
बदल रहा था रंग, जो गिरगिट सा भीड़ में
कोई कह रहा था उसको, वो पत्रकार है !
बहुत खूब, लाजबाब !
बेहद प्रभावशाली ग़ज़ल...
बहुत खुब जी
बदल रहा था रंग, जो गिरगिट सा भीड़ में
कोई कह रहा था उसको, वो पत्रकार है !...........बहुत खूब !
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
‘मंहगाई मार गई..!!
वाह बेहतरीन...
शुभकामनायें !!
har nazm behatarin aur sachchai bayan karti hui.......... sunder prastuti.
क्या कहूं... तीखा है.. बहुत..
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