Tuesday, October 19, 2010

चुपके से !

तुम मौन रहो
खामोश रहो
या खड़े रहो
खामोशी में
पर कुछ कह दो
चुपके से
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !

बात वो जो तुम
कह पाए
भीड़ भरे सन्नाटे में
आज तुम कह दो
चुपके से
आँखों से, मुस्कानों से
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !

15 comments:

Unknown said...

hi..whr r u now a days..not very active??

Apanatva said...

:)

संजय भास्‍कर said...

हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !

.........गजब कि पंक्तियाँ हैं

संजय भास्‍कर said...

...... काबिलेतारीफ बेहतरीन

संजय भास्‍कर said...

bahut khoob uday ji...........me to fan ho gaya apka

vandana gupta said...

वाह क्या अन्दाज़ है।

मनोज कुमार said...

भाई उदय जी!
चुपके से क्यों सरे आम कहूंगा, आपकी रचना बहुत अच्छी है! आपका अंदाज़ नया है। और यह सच है अगर तो बड़ा ही मीठा सच है।-

सुधीर राघव said...

बेहतरीन!!!

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर ।

प्रवीण पाण्डेय said...

मौन का संवाद संप्रेषण गाढ़ा होता है।

Rajeysha said...

अच्‍छा है। नहीं अच्‍छी है। नहीं जो जो आप सुनना चाह रहे हैं, सुन ही लेंगे।

राज भाटिय़ा said...

उम्दा जी, बहुत खुब... धन्यवाद

Udan Tashtari said...

हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से

-बेहतरीन...

अब टिप्पणी कर दी
चुपके से..

Archana Chaoji said...

....मैने कहा-आँखों से
तुमने सुना मुस्कानों से,
आओ मिल-बैठ कुछ बतिया लें
कुछ धीमे से-कुछ दुबके से...

अब भी तुम न मौन रहो
कुछ तो कह दो चुपके से ...

अनुपमा पाठक said...

sundar kavita!
maun samvad ki apni parampara hai...
regards,