तुम मौन रहो
खामोश रहो
या खड़े रहो
खामोशी में
पर कुछ कह दो
चुपके से
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !
बात वो जो तुम
कह न पाए
भीड़ भरे सन्नाटे में
आज तुम कह दो
चुपके से
आँखों से, मुस्कानों से
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !
15 comments:
hi..whr r u now a days..not very active??
:)
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !
.........गजब कि पंक्तियाँ हैं
...... काबिलेतारीफ बेहतरीन
bahut khoob uday ji...........me to fan ho gaya apka
वाह क्या अन्दाज़ है।
भाई उदय जी!
चुपके से क्यों सरे आम कहूंगा, आपकी रचना बहुत अच्छी है! आपका अंदाज़ नया है। और यह सच है अगर तो बड़ा ही मीठा सच है।-
बेहतरीन!!!
बहुत ही सुन्दर ।
मौन का संवाद संप्रेषण गाढ़ा होता है।
अच्छा है। नहीं अच्छी है। नहीं जो जो आप सुनना चाह रहे हैं, सुन ही लेंगे।
उम्दा जी, बहुत खुब... धन्यवाद
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से
-बेहतरीन...
अब टिप्पणी कर दी
चुपके से..
....मैने कहा-आँखों से
तुमने सुना मुस्कानों से,
आओ मिल-बैठ कुछ बतिया लें
कुछ धीमे से-कुछ दुबके से...
अब भी तुम न मौन रहो
कुछ तो कह दो चुपके से ...
sundar kavita!
maun samvad ki apni parampara hai...
regards,
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