Wednesday, April 29, 2009

शेर - 29

पीछे पलट के देखने की फुर्सत कहाँ हमें
कदम-दर-कदम हैं मंजिलें बडी ।

5 comments:

Vinay said...

आगे बढ़ने को प्रेरित करती पंक्तियाँ

----]
तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलेंतकनीक दृष्टा

जयंत - समर शेष said...

sach hai...

~Jayant

mark rai said...

damdaar aur babbar sher....

अमिताभ श्रीवास्तव said...

chareveti chareveti....

isiliye likha gayaa he..
aapka sher subhan allaah,, adavarz he janaab.

BrijmohanShrivastava said...

जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पे नजर है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा