"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
“ भोग व योग दोनों का प्रतिफल संतुष्टि प्रदायक है किंतु भोग का प्रतिफल क्षणिक व व्यक्तिगत है और योग का प्रतिफल विस्तृत व सामाजिक है।”
वैसे तो दोनों के ही प्रतिफल व्यक्तिगत होने चाहिए
sahi kaha bhog to kshanik hai hi...
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वैसे तो दोनों के ही प्रतिफल व्यक्तिगत होने चाहिए
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