Saturday, July 8, 2017

बेक़सूर

कुछ गवाहों की शक्ल में थे,
कुछ पुलिस के भेष में थे,
कुछ जज बने बैठे थे,

सब .. हमें ... कातिल ठहराने की जिद में थे ....

रहमत थी ...
करम थे ...
दुआएं थीं ... या कृपा .....

हम .. बेक़सूर थे ...
.... .... .... बेक़सूर निकले ..... ???

8 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

यह तो पुलिस, जज और वकील के रहमों कर्म पर है. आजकल झूंठ का सच और सच का झूंठ बना देना इनके बांये हाथ का कमाल है.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

'एकलव्य' said...
This comment has been removed by the author.
'एकलव्य' said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 10 जुलाई 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

'एकलव्य' said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 10 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

Ravindra Singh Yadav said...

यथार्थवादी चिंतन. विचारोत्तेजक रचना.

Rajesh Kumar Rai said...

बहुत खूब ।

शुभा said...

वाह !! बेकसूर थे और साथ में भाग्यशाली भी ।

रेणु said...

आदरणीय उदय जी - पहली बार आपकी छोटी सी सारगर्भित रचना पढ़कर आपके रचना संसार से परिचित हो रही हूँ | आपकी रचना बहुत ही सुंदर है और सार्थक है साथ ही आपकी सुघड़ लेखनी का परिचय देती है | आपको मेरी बहुत शुभकामनाएं --