न हाल पूछा ... न मिजाज जाना ....
कि -
हम .. अंदर से ... छिन्न-भिन्न हैं ....
ये ... जाने-समझे बगैर .....
उफ़ ... उन्ने .....
लिपट के कहा हमसे .....
कि -
हम ... अंदर-ही-अंदर ....
जल रहे हैं .. भुन रहे हैं ... मर रहे हैं ....
बचा लो हमको ....
अब तुम ही बताओ ...
कि -
इन हालात में ..
हम करते क्या ..... ??
गर न सुनते उनकी .. तो करते क्या ... ???
कि -
हम .. अंदर से ... छिन्न-भिन्न हैं ....
ये ... जाने-समझे बगैर .....
उफ़ ... उन्ने .....
लिपट के कहा हमसे .....
कि -
हम ... अंदर-ही-अंदर ....
जल रहे हैं .. भुन रहे हैं ... मर रहे हैं ....
बचा लो हमको ....
अब तुम ही बताओ ...
कि -
इन हालात में ..
हम करते क्या ..... ??
गर न सुनते उनकी .. तो करते क्या ... ???
1 comment:
बहुत सटीक रचना.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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