Monday, June 30, 2014

सितम ...

क्यूँ मियाँ, क्यूँ तुम … आज इतने ठप्प बैठे हो
हमने तो सुना था गप्प से तुम बाज नहीं आते ?

सच ! तेरे इस नूर पे, सिर्फ हक़ हमारा है कहाँ
जिसे देखो उसी की नजरें तुझपे जाके हैं टिकीं ?

खुद से खुद की शिकायत
इतना सितम क्यूँ यारा ?
अब तुम जुदा होके भी खफा हो यारा
भला अब इसमें गल्ती कहाँ है मेरी ?
कैसे किस्से, औ कैसी कहानी 'उदय'
चोरों की बस्ती है, चोरों का राज है ?

6 comments:

yashoda Agrawal said...
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देवदत्त प्रसून said...

मित्र ! लम्बी बीमारी के बाद कल से आपके साथ हूँ !अच्छी रचना है !

Kailash Sharma said...

बहुत खूब...

कविता रावत said...

कैसे किस्से, औ कैसी कहानी 'उदय'
चोरों की बस्ती है, चोरों का राज है ?
………… सबकुछ उन्ही का इसीलिए तो बात भी उनकी ही होती है हम तो सुनने वाले भर के रह गए

बहुत खूब!

kavita verma said...

bahut khoob..

Unknown said...

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