Thursday, March 27, 2014

फर्क ...

सच ! हम तो सिर्फ इतना जानते हैं 'उदय' 
दिल जो कह दे, लिख दे, वही कविता है ? 
… 
वक्त की शाख पे,… जो सबसे ऊपर बैठा है 
'उदय', वह 'खुदा' न होकर भी 'खुदा' जैसा है ?
… 
दलबदलुओं ने दल को दलदल बना दिया 
छप्प … छप्प … छप्प … छप्पाक … ?
… 
बस, … थोड़ा, … तनिक, … मामूली-सा … फर्क है दोनों में 'उदय' 
एक कांग्रेस मुक्त भारत चाहता है तो दूसरा भ्रष्टाचार मुक्त भारत ? 
… 
जब वो मेरे नाम की सुपाड़ी ले रहा था 'उदय' 
ठीक तभी, 
अपुन ने भी … 
पूरा पान चबा लिया था उसके नाम का ??? 
.... 

2 comments:

देवदत्त प्रसून said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति !

Unknown said...

सच हैं , आज कल बस दल ही बदल रहे हैं