सिर्फ ख़्वाबों-औ-ख्यालों की बातें न कर
हम हकीकत में भी,…… तेरे दीवाने हैं ?
…
अभी-अभी, तुम्हारे वादों ने, ख्यालों में सताया है हमें
चलो अच्छा ही है … हकीकत में … महफूज हैं हम ?
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तेरी ख्वाहिश की खातिर, आग से रिश्ता बनाया है
वर्ना, बर्फ के ……… आगोश में डूबे हुए थे हम ?
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रहम कर बे-रहम
जनता सोई हुई है ?
…
उफ़ ! तनिक,…तू इंतज़ार तो कर
तुझे भी यकीं हो जाएगा हम पर ?
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3 comments:
काफी उम्दा प्रस्तुति.....
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (05-01-2014) को "तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483" पर भी रहेगी...!!!
आपको नव वर्ष की ढेरो-ढेरो शुभकामनाएँ...!!
- मिश्रा राहुल
वाह।
वाह बहुत बढ़िया...
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