अक्सर, कभी-कभी, मुर्दे भी जाग पड़ते हैं 'उदय'
फिर ये तो, … … जीता-जगता मुर्दा क़ानून है ?
…
अब तू, मुझ पर, ज़रा भी एतबार न कर
हाँ, मैं फरेबी हूँ … फरेबी हूँ … फरेबी हूँ ?
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अब 'खुदा' ही जाने, है कौन कितने फासले पे
सच ! चहूँ ओर, इंकलाबी मशालें जल रही हैं ?
…
बस इक सिबाय तेरे, है सभी को एतबार हम पे
कि हमने, तेरी मोहब्बत में भेष बदला हुआ है ?
…
2 comments:
सुंदर चित्रण....
कभी पधारिए हमारे ब्लॉग पर भी.....
नयी रचना
"फ़लक की एक्सरे प्लेट"
आभार
bahut acche
Indian friends network
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