भरने को तो, कब के भर चुके हैं उनके पाप के घड़े
बस, फूटने के लिए एक अदद पत्थर की जरुरत है ?
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काश ! होता अगर हमारा भी तनिक उनके शहर से वास्ता
मुहब्बत न भी सही, पर उनकी दोस्ती जरुर होती हमसे ?
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चोर उचक्कों जैसा था कुछ प्यार हमारा उनसे यारा
कभी कूदते खिड़की वो थे, कभी फांदते हम दीवारें ?
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सच ! बिना बन्दगी के, वो सीधे बाँहों में आ टपके थे
हम जानते थे, किसी न किसी दिन खैर नहीं हमारी ?
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सच ! उनकी बातों में, तुम यूँ ही मत आ जाया कीजे
वो बड़े शातिर हैं, कोयले को भी डायमंड कह देते हैं ?
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1 comment:
सार्थक प्रस्तुति |
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