Tuesday, October 22, 2013

मसक्कत ...

हम ज़िंदा लोग हैं 'उदय', तब ही तो हिल-डुल रहे हैं 
वर्ना, क्या देखा है किसी ने कभी मुर्दों को हिलता ?
… 
'खुदा' जाने इतनी मसक्कत क्यूँ हुई है आज उनसे 
जिन्हें, कभी, हम, फूटी कौड़ी भी सुहाये नहीं थे ??
… 
हमसे मिले हो तुम कुछ अजनबी की तरह 
क्या तहजीब भूल गया है आज हुश्न तेरा ? 
… 
ज़रा फासले से मिला करो 
भ्रम, मिट जाएगा सारा ? 
… 
क़त्ल से, मंसा तो पूरी हो गई उसकी 'उदय'
पर, मुल्क के......... सपने अधूरे रह गए ?
...