हम ज़िंदा लोग हैं 'उदय', तब ही तो हिल-डुल रहे हैं
वर्ना, क्या देखा है किसी ने कभी मुर्दों को हिलता ?
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'खुदा' जाने इतनी मसक्कत क्यूँ हुई है आज उनसे
जिन्हें, कभी, हम, फूटी कौड़ी भी सुहाये नहीं थे ??
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हमसे मिले हो तुम कुछ अजनबी की तरह
क्या तहजीब भूल गया है आज हुश्न तेरा ?
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ज़रा फासले से मिला करो
भ्रम, मिट जाएगा सारा ?
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क़त्ल से, मंसा तो पूरी हो गई उसकी 'उदय'
पर, मुल्क के......... सपने अधूरे रह गए ?
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पर, मुल्क के......... सपने अधूरे रह गए ?
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2 comments:
सुन्दर रचना
बहुत उम्दा
नई पोस्ट मैं
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