Friday, October 4, 2013

घरौंदा ...

उफ़ ! गुमशुदगी दर्ज करा दी है किसी ने.. हमारे नाम की 
सिर्फ हुआ इत्ता कि हम तपते बदन बाहर नहीं निकले ?
… 
वाह !……… यार तू बड़ा शातिर निकला 
खूब नाम कमाया है तूने जूता उछाल के ?
… 
सच ! वे शेरों से लग रहे थे …… शेरों की भीड़ में 
दुम ने उनकी, सारा मजा किरकिरा ही कर दिया ? 
… 
सब्र कर, अब तू जान न ले 
तेरे लिए ही खट रहा हूँ मैं ? 
… 
आओ 'उदय' किसी टूटे हुए सपने को जोड़ा जाए
क्यूँ न उनकी यादों का इक घरौंदा बनाया जाए ?