देवालयों व शौचालयों को लेकर मिश्रित बयानबाजी निंदनीय है !
देवालय और शौचालय दो ऐसे विषय हैं जिन पर मिश्रित चर्चा करना उचित नहीं है, इन विषयों की न तो एक साथ चर्चा उचित है और न ही एक मंच पर चर्चा व्यवहारिक है। दोनों विषयों की आवश्यकता व उपयोगिता भिन्न है, दोनों में जमीन-आसमान जैसा अंतर है, अत: देश के तमाम बुद्धिजीवियों को चाहिए कि इन विषयों पर एक साथ चर्चा न करें, अगर चर्चा आवश्यक ही है तो व्यक्तिगत क्यों, राष्ट्रीय स्तर पर करें, संगोष्ठियाँ आयोजित कर करें, लेकिन अलग अलग करें। मेरा तो मानना है कि अगर इन दोनों विषयों पर हमारे नेतागण इतने ज्यादा संजीदा हैं तो संसद में चर्चा करें तथा किसी सार्थक निष्कर्ष तक पहुंचें, लेकिन चर्चा के विषय अलग अलग होने चाहिए। मेरा अभिप्राय मात्र इतना है कि चर्चा का उद्देश्य किसी निष्कर्ष पर पहुँचना होना चाहिए, न कि उलझना या उलझाना ? अत: इन विषयों के महत्त्व को समझें व मिश्रित चर्चा से बचें, दूर रहें, कहीं ऐसा न हो हम अपने मकसद में कामयाब न हों और चर्चा कहीं से कहीं चली जाए अर्थात तनाव की राह पकड़ ले ?
यहाँ मैं यह नहीं कहता कि चर्चा की ही न जाए, चर्चा जरुर करें, और किसी न किसी निष्कर्ष पर भी अवश्य पहुंचें, लेकिन मेरा अनुरोध सिर्फ इतना है कि दोनों विषय अलग हैं, दोनों की महत्ता अलग है, दोनों की आवश्यता अलग है, दोनों का स्थान अलग है, कृपया दोनों को आपस में गड्ड-मड्ड न करें ! इन विषयों को सुर्खिओं में लाने वाले हमारे दोनों नेतागण श्री जयराम रमेश व श्री नरेन्द्र मोदी आप दोनों से मेरा आग्रह है कि इन विषयों को तूल न दें, गर इन विषयों पर कुछ करना ही चाहते हैं तो दोनों के लिए पृथक पृथक योजनायें बनाएं व उन्हें साकार करें। जिन स्थानों पर देवालयों की जरुरत है वहां देवालय बनाएं तथा जिन स्थानों पर शौचालयों की जरुरत है वहां शौचालय बनाएं। मैं दावे के साथ कहता हूँ जरुरतमंद लोगों की जरूरतें पूर्ण होते ही वे आप दोनों के गुणगान करने से नहीं थकेंगे, सिर्फ गुणगान ही नहीं वरन वे आप दोनों को अपने काँधे पर बिठाकर जय जयकार के नारे लगाते हुए घूमेंगे भी, अत: बयानबाजी की अपेक्षा योजनाओं पर ध्यान दें।
आज देश में सिर्फ गाँवों में ही नहीं वरन शहर में भी एक ऐसा वर्ग है जो खुले में शौचक्रिया करने को मजबूर है, उनके पास शौच हेतु व्यवस्थाओं का अभाव है, सीधे शब्दों में कहा जाए तो ठण्ड, गर्मी, बरसात, सभी मौसमों में वे खुले मैदानों में शौचक्रिया हेतु जाने के लिए मजबूर हैं, गर उन्हें आपकी योजनायें शौचालय उपलब्ध कराएंगी तो वे निसंदेह आपके आभारी रहेंगे, आपको भगवान की तरह पूजेंगे। साथ ही साथ देश में ऐसे भी लोग, वर्ग व समुदाय हैं जो देव व देवालयों में आस्था रखते हैं लेकिन उनके पास आज देवालय नहीं हैं, यदि आपके प्रयासों से उन्हें पवित्र स्थानों पर उनकी जरूरतों के अनुसार देवालय मिल जायेंगे तो वे भी निश्चिततौर पर आपके गुणगान करेंगे तथा खुद को आपका कर्जदार महसूस करेंगे। आज देश में देवालयों की भी जरुरत है, शौचालयों की जरुरत है, किन्तु दोनों जरूरतें भिन्न-भिन्न हैं, दोनों के लिए पृथक पृथक योजनाओं की जरुरत है, पूर्णता की जरुरत है। देवालय व शौचालय दोनों ऐसे विषय हैं जिन पर मिश्रित चर्चा उचित नहीं है, जयराम रमेश व नरेन्द्र मोदी दोनों को अपने अपने कथन वापस लेना चाहिए, दोनों ही विषयों को एक साथ जोड़कर जो बयानबाजी हुई है वह निंदनीय है !
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