मेरी रूह को, न चैन मिलता, और न ही सुकून
गर, तेरा हिसाब चुकाए बिना चला गया होता ?
…
क्या करते, तेरे दर, गली, बस्ती में, हमें आना पडा
बार-बार बे-वफाई के इल्जाम हमसे सहे नहीं जाते ?
…
ऐंसा सुनते हैं 'उदय', गिरगिटों सा हुनर है उनमें
तभी तो वे अपनी असली पहचान छिपा लेते हैं ?
…
सच ! अब तू जिद न कर हमें आजमाने की
कई हैं, जो अब तक भूल नहीं पाए हैं हमें ?
...
देख, ज़रा संभल के गुजरना, उनके करीब से
वे आँखों से भी ……… लूट लेते हैं अक्सर ?
…
गर, तेरा हिसाब चुकाए बिना चला गया होता ?
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क्या करते, तेरे दर, गली, बस्ती में, हमें आना पडा
बार-बार बे-वफाई के इल्जाम हमसे सहे नहीं जाते ?
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ऐंसा सुनते हैं 'उदय', गिरगिटों सा हुनर है उनमें
तभी तो वे अपनी असली पहचान छिपा लेते हैं ?
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सच ! अब तू जिद न कर हमें आजमाने की
कई हैं, जो अब तक भूल नहीं पाए हैं हमें ?
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देख, ज़रा संभल के गुजरना, उनके करीब से
वे आँखों से भी ……… लूट लेते हैं अक्सर ?
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2 comments:
bahut khoob...
वाह, बहुत खूब
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