Thursday, September 5, 2013

यार जुलाहे ...

छोटी-छोटी बातों पे भी 
हमने देखा … अड़ते तुझको, 

रोते तुझको, लड़ते तुझको, भिड़ते तुझको 
हार गया, पर हार न मानी, 

हो उद्दण्ड जीत की ठानी 
ठानी तो बस ठानी-ठानी, हार न मानी, 

क्यों बुनता, क्यों रचता है तू … यार जुलाहे 
हर पल, … हर क्षण, … ऐसी कहानी … ?

5 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !

अरुण चन्द्र रॉय said...

julahe ka jiwan to aisa hi hota hai

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

Unknown said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर..