Wednesday, September 4, 2013

परिवर्तन ...

01 

तू अपनी खुबसूरती पे
इत्ता नाज न कर,
गर तू कहे
तो कुछ कहूँ मैं,
वर्ना,
दिल दुखाना
हमें भी
अच्छा नहीं लगता ??
…  
02

अभी तक तो
हम ढूँढ रहे थे भीड़ में खुद को
अब-जब
तुम कहते हो,  
तो चलो
हम …
ढूंढ लेते हैं खुदी में खुद को ?

03

यदि राजनीति में
अच्छे-सच्चे लोग नहीं आयेंगे,
तो कोई बताएगा
व्यवस्था कैसे बदलेगी ?
व्यवस्था परिवर्तन के लिए
क्या हम, यूँ ही
दम भरते रहेंगे
चीखते-चिल्लाते रहेंगे ???
...

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सत्य ही है, कहाँ लोगों को समझ आती है पर।

संजय भास्‍कर said...

बहुत बढ़िया,