Friday, August 9, 2013

फ़साने ...


उनकी वाल पे, बहुत भीड़ है आज
गर जी करे भी तो कैसे करे ????

वे मीठा-मीठा बोलेंगे और तुम्हें ललचायेंगे
देखना इक दिन वे ही आपस में लड़वायेंगे ?

गर नाज है 'उदय', उन्हें अपने ताज होने पर
तो, हमें भी गुमान है उन्हें देखते रहने पर ?

किसने कहा है मिल कर ही मिला करो
कभी न मिलकर भी मिल लिया करो ?
...
कभी कभी गुजर जाते हैं 'उदय', ऐंसे भी फ़साने दिल के
जिनकी चर्चा भी नहीं होती, जो गुमसुम भी नहीं होते ?

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सही है..

देवदत्त प्रसून said...

सुन्दर मुक्तक क्षणिकाएं !