हर घड़ी, यूँ ही गुमसुम मत रहा कीजे
दिल की बातें भी तो, कुछ कहा कीजे ?
इक तेरी दीद को हम तरशते हैं सुबह-औ-शाम
देख के हमको, तनिक मुस्कुरा दिया कीजे ??
हमारे लव तो सिल दिए हैं जहां के दस्तूरों ने
तुम तो दिल की, बेझिझक कह दिया कीजे ?
सच ! मिलेगा क्या तुम्हें, दूर रहकर हमसे
तनिक सिमट के भी तो मिल लिया कीजे ?
किसने रोका है तुम्हें राह में दिलवर
तुम तो बेधड़क आया-जाया कीजे ?
रखा है क्या, मिलेगा क्या तुम्हें परछाइयों में
कभी दिल खोल के भी तो मिल लिया कीजे ?
1 comment:
सुप्त नहीं, उन्मुक्त रहो प्रिय।
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