उनकी तरह, उनका भी हक़ है हमें आजमाने का
कोई तो होगा, ............ जो उधेड़ लेगा हमको ?
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वो इक बार कह तो दें, कि - दंगाइयों संग रिश्ता-नाता है
तो फिर, हमारी बस्तियाँ ............. हम खुद जला देंगे ?
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लो, भरी दोपहर में, घोर अन्धेरा छा गया
उफ़ ! मुहब्बत उनकी, दगाबाज निकली ?
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तुम्हारी हिचकियाँ बयाँ कर रही हैं हाजिरी मेरी
बस इतना तो बता दो, कब हम जुबाँ पे होंगे ?
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सच ! कभी टेड़ी तो कभी सीधी, खुद-ब-खुद हो जाती है
ऐंसा सुनते हैं 'उदय', बहुत 'मुलायम' है दुम उनकी ??
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