Wednesday, March 6, 2013

लालसा ...


सच ! गर तेरी खामोशियों को पढ़ना, हमने सीखा नहीं होता 
तो शायद, तेरी चाहतों से अब तलक,..हम अंजान ही रहते ?
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आज, जिसे देखो वही जल्दी में है 
तनिक जल्दी....हमें दे दो 'उदय' ?
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रात के किसी भी पहर, ठिकाना बदल लेते हैं हम 
अब, कमजोर चारदीवारियों पे...भरोसा नहीं रहा ?
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सच ! लिखने के शौक से लिख लेते हैं हम 'उदय' 
वर्ना, छपने की लालसा कभी जेहन में नहीं रही ?
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लौंडे किये हैं पैदा, कमाल के उन्ने 
न घर के दिखे हैं, और न घाट के ?