उनकी मुहब्बत की, अब हम क्या मिसाल दें
शौहरत की चाह में, .... उन्ने बांहें बदल लीं ?
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'खुदा' जाने किस दौर से गुजर रहे हैं वो
वजह न भी हो, तो भी मुस्कुरा उठते हैं ?
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गर हम 'उदय', कल उनकी गलियों से, गुजरे नहीं होते
तो शायद आज हम, हर एक आँख को खटके नहीं होते ?
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सूट-बूट है, तो कविता लिखो, पढ़ो, करो
वर्ना, बे-फिजूल में वक्त जाया न करो ?
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तरीके चाहे जो हों, पर नतीजे अपने हों
अब आज के दौर में 'उदय' हारना कैसा ?
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1 comment:
बहुत खूब..
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