सच ! जिस्म से रूह निकल रही है मेरे
तनिक और ठहर जाओ तो सुकूं मिले ?
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न कद है न काठी है, न दिमाग है न खुबसूरती
फिर भी, .......................... वो सरकार हैं ?
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अब जब ब्रेक-अप हो ही रहा है तो हिसाब-किताब पूरा कर लो
कहीं ऐंसा न हो, दो-चार चुम्बन तुम्हारे हमारे पास रह जाएँ ?
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जनता को मिर्गी की बीमारी है, या सत्ताधारियों को
कोई तो बताये 'उदय', हम जूता सुंघायें किसे ????
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आओ किसी पुरानी बात को याद कर के ठहाके लगा लें
वर्ना अब, ............. ठहाकों की वजहें मिलती कहाँ हैं ?
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5 comments:
सार्थक और
सुंदर प्रस्तुति
बधाई
agrah hai mere blog main sammlit ho
jyoti-khare.blogspot.in
बहुत खूब..
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
बहुत खूब !
आज की ब्लॉग बुलेटिन होली तेरे रंग अनेक - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत खूब!
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