Sunday, December 9, 2012

आशिक ...


लो, उन्ने.. फिर से उन्हें धो डाला 
उफ़ ! क्या गजब की सफेदी है ??
... 
चवन्नी छापों को, सिक्कों के तमगे 
क्या.... यही हिन्दी का साहित्य है ? 
... 
रहम कर, बेरहम न बन 
सच्चे आशिक... बड़ी मुश्किल से मिलते हैं ?