काश ! होता .......... हम में भी, छपने-छपाने का हुनर
तो शायद, हमारे करतबों पे भी तालियाँ बज रही होतीं ?
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अब 'खुदा' ही जाने, क्यूँ खफा हैं वो
बस, वजह पूंछो तो चुप हो जाते हैं ?
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लो, मचा.......... बेवजह का शोर-शराबा है
जबकि सब जानते हैं शून्य-बटे-सन्नाटा है ?
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तुझे एतबार करना है कर, न करना है न कर
पर, मुझ पर फरेबी होने का इल्जाम न लगा ?
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चलो ठीक है 'उदय', वे किसी की उम्मीदों पे तो खरे उतरे
वैसे, ................ बुझता चिराग, और करता भी क्या ?
1 comment:
जलता रहे चिराग..
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