क्या खूब, अजब-गजब सल्तनतें हैं अपने मुल्क में 'उदय'
जिधर देखो उधर, मूर्ख, धूर्त, ढोंगी, पाखंडी... सुलतान हैं ?
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सुनो, ... वे ... बेक़सूर हैं, खुद की अदालत में
अब आगे तुम्हारी मर्जी, जहाँ जाना है जाओ ?
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लो, फूंक दिए उन्ने .............. सवा-चार-सौ करोड़
खोदा पहाड़ और निकली चुहिया, जय छत्तीसगढ़ !
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तू, अपने समुन्दर से, आगोश में डूब जाने दे मुझे
सच ! जी भर गया है अब इस खुदगर्ज जमाने से !!
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चलो, उन्ने कुबूला तो, कि - आम आदमी... आम आदमी है
जिनके लिए, रहनुमाई के दर, बा-अदब सदा-सदा से बंद हैं ?
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