जब ख्वाहिशों से जियादा मिल चुका है तुम्हें
फिर, ख्याली पुलाव क्यूँ पका रहे हो मियाँ ?
...
दागी मंत्री-और-अफसर तो उनकी शान हैं 'उदय'
तुम भी, खामों-खाँ उन पे निशाने साध रहे हो ?
...
दोस्तो, कुछ तो रहम करो, वे रहम के हकदार हैं
अल्टी-पल्टी से, हमने ही उन्हें, सत्ता सौंपी है ?
...
अब तो ...... उन्हें, छोड़ दो, बख्श दो, जाने दो
उन्ने, खुद ही खुद को, बे-कसूर ठहरा लिया है ?
...
'उदय' .................. हम झुके नहीं, टूट गए
गर, झुक जाते, तो रौंदे जा रहे होते अब तक ?
No comments:
Post a Comment