Wednesday, November 21, 2012

अड़चन ...


अब क्या बयां करता, वो ख्वाहिशें दिल की 
जब दो घड़ी के बाद, जहन्नुम नसीब था ? 
... 
जी चाहे है, किसी दिन फुर्सत निकाल के तुम्हें पूरा पढ़ लूँ 
ताकि, ........ फिर कभी, ........ कहीं कोई अड़चन न हो ?
... 
क्या खूब तसल्ली दे रहे हैं वे ........... आज खुद को 'उदय' 
लूट-खसोट जारी रखो, इसी रकम से हम चुनाव जीत लेंगे ? 

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