Sunday, October 7, 2012

जीत ...


तुम जीत कर हारने का सोचो, 
और मैं ...
हार कर जीतने का सोचता हूँ, 
किसी न किसी तरह ...
इस तरह ... 
हम दोनों जीत जायेंगे ?????

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

दोनों ही देख लें।

Arvind Jangid said...

बहुत सुन्दर....उदय जी एक अरसा बीत चला आपको मरे ब्लॉग पर आये...कभी वक्त निकाल कर पधारिये..आपका तहे दिल से स्वागत है.

नाम : अरविन्द जांगिड 'सच'
काम : बाबूगिरी,
कहता हूँ : दिल की,
रहने वाला : सीकर, राजस्थान.