Friday, October 5, 2012

सरपंची ...


काश ! हमारे बस में होता, 'दिल' छोटा-बड़ा करना 
तो एक बार बड़ा कर के, जहां अपना हम कर लेते ? 
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कदम कदम पे, दंगाईयों का हुजूम मिल जाता 'उदय' 
गर, मौक़ापरस्तों को, ...... आज रोका नहीं जाता ?
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ये किन महाशय को सरपंची सौंपी गई है 'उदय' 
उफ़ ! जिन्ने कभी ... गाँव की सूरत नहीं देखी ?
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गर, इसी तरह वे, .......................... उन्हें चांटे जड़ते रहे 'उदय' 
तो तय है, गाल उनके, सिर्फ सूजेंगे नहीं वरन लाल भी हो जायेंगे ? 
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'खुदा' जाने इसके बाद नंबर किसका आना है 
बहुत तो, यह सोच कर ही अचंभित हैं 'उदय' ?