भारतीय मीडिया जिसे भारतीय लोकतंत्र के चौथे सशक्त स्तम्भ के रूप में माना व जाना जाता है जिसके वर्त्तमान समय में दो धड़े प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया के रूप में सक्रीय व क्रियाशील हैं किन्तु विगत कुछेक वर्षों से इनकी निष्पक्षता व पारदर्शिता सवालों के कटघरे में है। यदि ये अपनी अपनी आँखें मूँद कर सीधे व सरल ढंग से नाक की सीध में चलते रहते अर्थात अपनी भूमिका का निर्वाहन व सम्पादन करते रहते तो शायद प्रश्न ही खड़े नहीं होते, किन्तु यहाँ यह भी स्पष्ट करना आवश्यक समझता हूँ कि सवाल इनकी सक्रियता व क्रियाशीलता पर नहीं लग रहे हैं वरन इनके आचरण की संदिग्तता पर लग रहे हैं।
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ वर्तमान समय में न सिर्फ सक्रीय व क्रियाशील है वरन बेहद सशक्त व आधुनिक संसाधनों से युक्त भी है, इन प्रगतिशील हालात में मीडिया का आचरण यदि संदेह व सवालों के कटघरे में है तो यह निसंदेह गंभीर व विचारणीय मुद्दा है ! वर्त्तमान समय में मीडिया पर सांठ गांठ के गंभीर आरोप लग रहे हैं यहाँ पर मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि सांठ-गांठ से मेरा तात्पर्य गठबंधन, मिलीभगत अथवा तालमेल की नीति से ओत-प्रोत नीति से है यह नीति सामान्य तौर पर सत्तासीन राजनैतिक अथवा व्यवसायिक प्रतिस्पर्धी आपस में अपने अपने निजी स्वार्थों व मंसूबों को साधने अर्थात पूर्ण करने के लिए उपयोग में लाते हैं।
यहाँ पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब मीडिया का राजनैतिक हितों व व्यवसायिक हितों से कोई लेना-देना नहीं है तो फिर यह सांठ-गांठ क्यों व किसलिए ! यदि मीडिया का राजनीति व व्यावसाय से कुछ लेना-देना है तो वो सिर्फ इतना कि इनकी नीतियों व कारगुजारियों को समय समय पर निष्पक्ष व निर्भीक ढंग से जनता के सामने रखना है। क्या कोई भी मीडिया कर्मी ऐसा होगा जो अपने कर्तव्यों व दायित्वों से अंजान होगा ... शायद नहीं ! फिर क्यों मीडिया कर्मियों पर खुल्लम-खुल्ला तौर पर राजनैतिज्ञों व उद्धोगपतियों के साथ सांठ-गांठ के सकारात्मक अथवा नकारात्मक आरोप लग रहे हैं अर्थात आचरण जगजाहिर हो रहे हैं ! इसी पराकाष्ठा का एक जीता-जगता उदाहरण वर्त्तमान में सुर्ख़ियों में आया नवीन जिंदल बनाम जी न्यूज प्रकरण है, ठीक इसी क्रम में कुछ समय पूर्व नीरा राडिया प्रकरण में भी अनेक प्रतिष्ठित मीडिया कर्मी सुर्ख़ियों में रहे थे !
आधुनिकीकरण की दौड़ एक ऐसी दौड़ है जिसमे हरेक महत्वाकांक्षी शामिल होना चाहता है, यहाँ आधुनिकीकरण से मेरा तात्पर्य आधुनिक संस्कृति व भौतिक सुख-सुविधाओं से ओत-प्रोत होने से है, जब आधुनिक संस्कृति अपने चरम पर चल रही हो तब क्या कोई भी महात्वाकांक्षी शांत ढंग से उसे बाहर से बैठ कर देख सकता है ... शायद नहीं ! संभव है यह एक कारण हो मीडिया कर्मियों का राजनैतिज्ञों व उद्धोगपतियों की ओर रुझान का, या फिर मीडिया को अपने पावर अर्थात शक्ति का अचानक ही एहसास हुआ हो कि क्यों न राजनीति व व्यवसाय को भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर अपने ढंग से संचालित किया जाए !
साथ ही साथ हम इस बात से भी कतई इंकार नहीं कर सकते कि मीडिया को गुमराह करने का प्रयास नहीं किया गया होगा, या ऐसे प्रलोभन नहीं दिए गए होंगे जिनके प्रभाव में आकर मीडियारूपी धारा का प्रवाह स्वमेव मुड गया हो, या सीधेतौर पर यह मान लिया जाए कि झूठी महात्वाकांक्षा इसकी मूल वजह है ! संभव है इन कारणों में से ही किसी न किसी कारण की चपेट में आकर कुछेक या ज्यादातर मीडिया कर्मियों ने अपनी स्वाभाविकता को खो दिया है जिसके परिणामस्वरूप ही नवीन जिंदल बनाम जी न्यूज प्रकरण हमारे समक्ष है। यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि इन्हीं परिस्थितियों व परिणामों के फलस्वरूप ही आज सम्पूर्ण मीडिया तरह तरह के सवालों के कटघरे में स्वमेव खडी है !
1 comment:
प्रश्न बड़े गहरे हैं..
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