आज रावण ने रावण जला के, खूब वाह-वाही लूटी है
पर, दिल के किसी कोने में, बेचैनी जला रही है उसे ?
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उनका अहंकार, किसी रावण से कम नहीं है 'उदय'
बस, फर्क है तो, ................. तनिक लचीला है ?
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भ्रष्टाचार रूपी अवैध बम फट तो रोज रहे हैं 'उदय'
मगर अफसोस, कोई कार्यवाही को तैयार नहीं है ?
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हद है 'उदय', लोगों ने, पुतलों पे भड़ास निकाल ली है
जबकि, कदम-कदम पे, ज़िंदा रावणों की भरमार है ?
2 comments:
बहुत बढ़िया जनाब
इसका अन्त हर एक के लिये मन के रावण से ही होना है..
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