जूता पार्टी औ चांटा पार्टी नजर नहीं आ रही है यारो
भ्रष्टाचारी ...... सरेआम, बे-खौफ घूम रहे हैं आज ?
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ये फ़रियाद नहीं है दोस्त, ... मुहब्बत है
जिस दिन समझोगे, बहुत पछताओगे ?
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नहीं है चाह हमें ....... बनावटी तमगों की
फिर भला क्यूँ, हम उनकी जी-हुजूरी करें ?
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अब तुम, इतना भी न इतराओ दिखा-दिखा कर
कहीं ये हाँथ .................. बेकाबू न हो जाएं ?
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उन्होंने, कुछ इस तरह, मुंडी हिला के 'हाँ' कहा था
हमें महीनों लगा ऐसे, कि - .... जैसे 'ना' कहा हो !
1 comment:
हाहा.. हाँ और ना वाला तो मस्त था..
खूबसूरत रचना..
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